श्रुत को समझना/समझाना
अनभिलप्य = जो कहने योग्य नहीं।
उसका अनंतवां भाग कहने योग्य = प्रज्ञापनीय।
उसका अनंतवां भाग श्रुत में लिपिबद्ध क्योंकि शब्दों की सीमा बहुत छोटी होती है। इसको हम अपने-अपने क्षयोपशम से समझते हैं जैसे मोटे पाइप से आये पानी को पात्रों के अनुसार ग्रहण करना।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड गाथा – 334)
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने श्रुत को समझना एवं समझाने का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।