श्रुतज्ञान ही स्व(स्वार्थ)-पर(परार्थ) कल्याणक होता है। बाकी चार ज्ञान स्वार्थज्ञान ही हैं।
केवलज्ञान भी जानता है पर उसके द्वारा दिव्यध्वनि नहीं खिरती। इसके लिये अन्य साधनों की ज़रूरत होती है, उससे कहने की शक्ति आती है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (शंका समाधान – 44)
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने श्रुतज्ञान को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने श्रुतज्ञान को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।