अंतरदृष्टि होने के बाद भी संयम की आवश्यकता है।
दवाई प्राप्त करने मात्र से काम नहीं चलता, उसे उचित मात्रा में, उचित समय पर, परहेज के साथ लेने से लाभ होगा।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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संयम का तात्पर्य व़त व समिति का पालन करना,मन वचन काय के अशुभ प्रवृत्ति का त्याग करना तथा इन्द़ियो को वश में रखना ही संयम है।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि अंतर्दृष्टि होने के बाद भी संयम की आवश्यकता है। जैसे दवाईयां लेने से काम नहीं चलता बल्कि परहेज करने पर ही लाभ मिलता है। अतः जीवन में संयम रखना आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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संयम का तात्पर्य व़त व समिति का पालन करना,मन वचन काय के अशुभ प्रवृत्ति का त्याग करना तथा इन्द़ियो को वश में रखना ही संयम है।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि अंतर्दृष्टि होने के बाद भी संयम की आवश्यकता है। जैसे दवाईयां लेने से काम नहीं चलता बल्कि परहेज करने पर ही लाभ मिलता है। अतः जीवन में संयम रखना आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।