संवेग संसार से भयभीत होना।
संवेग धर्म को ग्रहण करने की पात्रता देता है।
संवेग के अभाव में पाप भी उतनी ही Intensity से किये जा रहे हैं।
इसीलिये अभिषेक/ पूजा से पहले भावनायें भायी जातीं हैं – कित निगोद कित नारकी…..
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तित्थ. भा. – 36)
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने संवेग की परिभाषा बताई गई है वह पूर्ण सत्य है।
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने संवेग की परिभाषा बताई गई है वह पूर्ण सत्य है।