पाप
प्रवचनसार-गाथा-233 में >> हिंसा से प्रमाद व कर्मबंध कहा और गाथा 234 में परिग्रह होने मात्र से हिंसा और कर्मबंध कहा है, बाकी 3 पापों का नाम क्यों नहीं लिया ?
झूठ, चोरी और कुशील से पीड़ा होगी ही यानि ये हिंसा में समाहित हो गये ।
पर परिग्रह से किसी दूसरे को पीड़ा नहीं, इसलिये यह हिंसा में समाहित नहीं होते हैं पर इसके द्वारा कर्मबंध अवश्य होता है ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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पाप का मतलब जो आत्मा को शुभ से बचाए अथवा अशुभ परिणाम होना होता है,यह पांच होते हैं, हिंसा झूठ चोरी कुशील और परिग़ह । उपरोक्त कथन सत्य है कि झूठ, चोरी,कुशील से पीड़ा ही होगी यानी हिंसा में समाहित हो गये, लेकिन परिग़ह से किसी को पीड़ा नहीं होती है, इसलिए इसे इसको हिंसा में नहीं माना जाता, लेकिन इसके द्वारा कर्मबंध अवश्य होता है।
अतः जीवन में परिग़ह को छोड़ना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।