अंत समय में
संथारा- (श्वेताम्बर परंपरा) = आखिरी शयन,
Jumping Board – इस शरीर से दूसरे शरीर के लिये।
सल्लेखना – (दिगम्बरी परंपरा) – भीतर कषाय (क्रोधादि) को कृष करना तथा शरीर को कृष होते देखना, जब Unrepairable हो जाय तब पोषण/ पुष्ट करना छोड़ना।
समाधि – ( गृहस्थों को) = जहाँ आधि (मानसिक रोग/Tension), व्याधि (शारीरिक रोग), उपाधि – लोकेषणा, तीनों को छोड़ भगवान का नाम लेते हुए शरीर छोड़ना ।
गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
4 Responses
मुनि श्री क्षमासागर महाराज जी ने अंत समय के लिए जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! अतः सल्लेखना तो साधुओं द्वारा की जाती है! लेकिन श्रावकों के लिए कम से कम समाधिमरण भावना रखना चाहिए ताकि अंत समय में कम से कम णमोकार मंत्र बोलकर ही प़ाण जाना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है!
‘लोकेषणा’ ka kya meaning hai, please ?
लोक में सम्मान पाने का भाव ।
Okay.