दो प्रकार का –
1. बाहर का, प्रकाश करने पर समाप्त
2. अंदर का – ज्ञान होने पर समाप्त/जागने पर समाप्त
सोचें दोनों ही अंधकार पौदगलिक है, मैं चेतन हूँ, मुझे क्या ड़र !
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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उक्त कथन सत्य है कि अंधेरा दो प्रकार का होता है बाहर और अंदर का। लेकिन बाहर का प़काश होने पर समाप्त हो जाता है लेकिन अंदर का ज्ञान होने पर समाप्त या जागने पर समाप्त होता है लेकिन दोनों अंधकार पौदगालिक है क्योंकि मैं चेतन आत्मा हूं तो ड़रने का कोई मतलब नहीं है।
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उक्त कथन सत्य है कि अंधेरा दो प्रकार का होता है बाहर और अंदर का। लेकिन बाहर का प़काश होने पर समाप्त हो जाता है लेकिन अंदर का ज्ञान होने पर समाप्त या जागने पर समाप्त होता है लेकिन दोनों अंधकार पौदगालिक है क्योंकि मैं चेतन आत्मा हूं तो ड़रने का कोई मतलब नहीं है।