पूजाओं(नन्दीश्वर पूजा) में आता है कि अकृत्रिम-मूर्ति ऐसी दिखती हैं जैसे बोल रही हों, तथा यह भी कहा गया है कि उनके दाँत वज्र के होते हैं ।
दोनों संभव तभी होंगे जब उनके होंठों में Space होगा, जैसे आँखों में है ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
Share this on...
One Response
आकृत्रिम मंदिर शाश्र्वत और सदैव प़काशित रहने वाले जिनमन्दिर को कहते हैं। जबकि मनुष्य लोक में मनुष्यों के द्वारा निर्मित जिन मन्दिर को कृत्रिम चैत्यालय कहा जाता है। अतः उक्त कथन सत्य है कि नन्दीश्ववर पूजा में आता है कि आकृत्रिम मूर्ति ऐसी दिखती है कि जैसे बोल रही हो,तथा यह भी कहा गया है कि उनके दांत बज़ के होते हैं।अत यह संभव तभी होंगे जब उनके होंठों में जगह होगा जैसे आंखों में होता है।
One Response
आकृत्रिम मंदिर शाश्र्वत और सदैव प़काशित रहने वाले जिनमन्दिर को कहते हैं। जबकि मनुष्य लोक में मनुष्यों के द्वारा निर्मित जिन मन्दिर को कृत्रिम चैत्यालय कहा जाता है। अतः उक्त कथन सत्य है कि नन्दीश्ववर पूजा में आता है कि आकृत्रिम मूर्ति ऐसी दिखती है कि जैसे बोल रही हो,तथा यह भी कहा गया है कि उनके दांत बज़ के होते हैं।अत यह संभव तभी होंगे जब उनके होंठों में जगह होगा जैसे आंखों में होता है।