अगुरूलघु

अशुद्ध जीवों में यह कर्मरूप होता है और शरीर को अति भारी/हल्का नहीं होने देता,
शुद्ध द्रव्यों में यह गुणरूप होता है और षटगुणी हानि लाभ कराता रहता है ।
(क्योंकि शुद्धों के शरीर तो होता नहीं है – चिंतन)

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