अतिचार – यदाकदा दोष, प्रायश्चित लेना,
अनाचार – व्रत छोड़ना, (उदा. आचार्य समंतभद्र),
शिथिलाचार तो पाप है, दुर्गति का कारण है ।
पहले दो तो क्षम्य हैं, शिथिलाचार नहीं ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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4 Responses
अतिचार का मतलब ग़हण किए गए व़तो में शिथिलता या दोष लगना होता है। अनाचार का मतलब ग़हण किए गए व़त या प़तिज्ञा का भंग होना होता है,इसी प्रकार शिथिलाचार का मतलब जब गुरुओं से दीक्षा आदि ली जाती है, यदि उसमें शिथिलता होती है। अतः उक्त कथन सत्य है कि अतिचार में यदा-कदा दोष लगने पर प्रायश्चित लेना पड़ता है। अनाचार में व़त को छोड़ना में जो उदाहरण आचार्य समंतभद़ का है, लेकिन शिथिलाचार पाप है जो दुर्गति का कारण होता है। इसलिए पहले दो तो लक्ष्य है लेकिन शिथिलाचार नहीं।
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अतिचार का मतलब ग़हण किए गए व़तो में शिथिलता या दोष लगना होता है। अनाचार का मतलब ग़हण किए गए व़त या प़तिज्ञा का भंग होना होता है,इसी प्रकार शिथिलाचार का मतलब जब गुरुओं से दीक्षा आदि ली जाती है, यदि उसमें शिथिलता होती है। अतः उक्त कथन सत्य है कि अतिचार में यदा-कदा दोष लगने पर प्रायश्चित लेना पड़ता है। अनाचार में व़त को छोड़ना में जो उदाहरण आचार्य समंतभद़ का है, लेकिन शिथिलाचार पाप है जो दुर्गति का कारण होता है। इसलिए पहले दो तो लक्ष्य है लेकिन शिथिलाचार नहीं।
“शिथिलाचार” ka bhi arth spasht kar den , please?
व्रतों में लगातार दोष लगा रहे हैं पर छोड़ भी नहीं रहे/ दोषों का अफ़सोस नहीं/ justify करते हैं ।
Okay.