अतिचार / अनाचार
अतिचार – प्रायश्चित भाव सहित,
अनाचार – प्रायश्चित भाव रहित ।
क्षु. श्री जिनेन्द्र वर्णी जी
अतिचार – प्रायश्चित भाव सहित,
अनाचार – प्रायश्चित भाव रहित ।
क्षु. श्री जिनेन्द्र वर्णी जी
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अतिचार-ग़हण किये गए व़तों में शिथिलता आना या दोष लगने वाला होता है।इसमें प़ायश्चित भाव सहित होता है। अनाचार-ग़हण करना व़त या प़तिग्या भंग होना कहलाता है।