आचार्य अकलंकदेव – अधर्म-द्रव्य, लोक के आकार तथा स्थिति को बनाये रखने में निमित्त है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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अधर्म द़व्य जो जीव और पुदग्ल ठहरने में सहायक होते हैं। यह द़व्य समूचे लोक में व्याप्त है,यह वृक्ष की छाया की तरह है, यह मुसाफिर को छाया देता है। अतः मुनि महाराज ने जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।
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अधर्म द़व्य जो जीव और पुदग्ल ठहरने में सहायक होते हैं। यह द़व्य समूचे लोक में व्याप्त है,यह वृक्ष की छाया की तरह है, यह मुसाफिर को छाया देता है। अतः मुनि महाराज ने जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।