1 इंद्रिय के 3 प्राण (स्पर्शन इंद्रिय, काय-बल, आयु),
2 इंद्रिय के 4 प्राण (3 + रसना),
3 इंद्रिय के 5 प्राण (4 + घ्राण),
4 इंद्रिय के 6 प्राण (5 + चक्षु),
5 इंद्रिय के 7 प्राण (6 + कर्ण),
संज्ञी के 8 प्राण (7 + मन)।
(वचन, श्वाच्छोसवास नहीं होते)
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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मुनि महाराज जी ने अपर्याप्तक के प़ाण की परिभाषा देकर जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है!
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मुनि महाराज जी ने अपर्याप्तक के प़ाण की परिभाषा देकर जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है!