1. देवाभिषेक – देवों के जन्म के समय
2. राज्याभिषेक – राजाओं के
3. जन्माभिषेक – भगवान के जन्म के समय
4. दीक्षाभिषेक – भगवान के दीक्षा के समय
5. जिनाभिषेक – भगवान की मूर्ति का, जो हम रोज मंदिरों में करते हैं ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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अभिषेक- – जिन प़तिमा के स्नपन या प़क्षालन को कहते हैं।इसका मूल उद्देश्य अपने आत्म परिणामों को निर्मलता आना होता है। अतः उक्त अभिषेक पांच प्रकार के होते हैं यह कथन सत्य है लेकिन इसमें जिनाभिषेक का बहुत अधिक महत्व है जो भगवान् की मूर्ति का है जो हम लोग हर रोज मन्दिरो में करते हैं, जिसका भाव संसार के सभी प्राणियों के कल्याण का भाव रहता है और मस्तिष्क पर गंधोदक लगाने पर आत्मा को पवित्र करता है।
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अभिषेक- – जिन प़तिमा के स्नपन या प़क्षालन को कहते हैं।इसका मूल उद्देश्य अपने आत्म परिणामों को निर्मलता आना होता है। अतः उक्त अभिषेक पांच प्रकार के होते हैं यह कथन सत्य है लेकिन इसमें जिनाभिषेक का बहुत अधिक महत्व है जो भगवान् की मूर्ति का है जो हम लोग हर रोज मन्दिरो में करते हैं, जिसका भाव संसार के सभी प्राणियों के कल्याण का भाव रहता है और मस्तिष्क पर गंधोदक लगाने पर आत्मा को पवित्र करता है।