प्राणी असंयम में इन्द्रिय असंयम भी है ।
प्राणी असंयम द्वेष तथा राग की अधिकता से होता है ।
राग से कैसे ?
जैसे द्विदल में जायके के चक्कर में हिंसा मानने को तैयार नहीं होते, चमड़े/मोती का प्रयोग छोड़ नहीं पाते ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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संयम का तात्पर्य व़त व समिति का पालन करना,मन वचन काय के द्वारा अशुभ प्रवृत्ति का त्याग करना तथा इन्द़ियो को वश में रखना होगा। अतः उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।जीवन में असंयम का त्याग करना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।संयम ही जैन धर्म में महत्वपूर्ण योगदान रहता है।
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संयम का तात्पर्य व़त व समिति का पालन करना,मन वचन काय के द्वारा अशुभ प्रवृत्ति का त्याग करना तथा इन्द़ियो को वश में रखना होगा। अतः उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।जीवन में असंयम का त्याग करना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।संयम ही जैन धर्म में महत्वपूर्ण योगदान रहता है।