किसी अंग के कटने पर आत्मप्रदेश संकुचित और अंग जोड़ने पर फैल जाते हैं ।
केवलज्ञान के पहले उपसर्ग में अंग काटने पर मोक्ष में आत्मा पूर्णांग हो जाती है ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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जो यथासंभव ज्ञान, दर्शन, सुख आदि गुणों में वर्तता या परिणमन करता है वह आत्मा है। यह तीन प्रकार की है,बहिर आत्मा, अंतरात्मा ओर परमात्मा। अतः उक्त कथन सत्य है कि किसी अंग के कटने पर आत्मप़देश संकुचित और अंग जोड़ने पर फ़ैल जाते हैं। केवलज्ञान के पहिले उपसर्ग में अंग काटने पर मोक्ष में आत्मा पूर्णांग हो जाती है।
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जो यथासंभव ज्ञान, दर्शन, सुख आदि गुणों में वर्तता या परिणमन करता है वह आत्मा है। यह तीन प्रकार की है,बहिर आत्मा, अंतरात्मा ओर परमात्मा। अतः उक्त कथन सत्य है कि किसी अंग के कटने पर आत्मप़देश संकुचित और अंग जोड़ने पर फ़ैल जाते हैं। केवलज्ञान के पहिले उपसर्ग में अंग काटने पर मोक्ष में आत्मा पूर्णांग हो जाती है।