अप्रमत्त* के ही आयुकर्म की उदीरणा नहीं है बाकी सब (निचले गुणस्थान वाले) तो आयुकर्म का अपव्यय ही करते हैं ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
(*7वें तथा आगे के गुणस्थानों में)
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आयू कर्म-जिस कर्म के उदय से जीव, मनुष्य आदि भव धारण करता है उसे कहते हैं। इसमें नारकीय,तिर्यंच,देव और मनुष्य आयू में चार भेद है। अतः उक्त कथन सत्य है।आयू कर्म के लिए अच्छे कर्म करना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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आयू कर्म-जिस कर्म के उदय से जीव, मनुष्य आदि भव धारण करता है उसे कहते हैं। इसमें नारकीय,तिर्यंच,देव और मनुष्य आयू में चार भेद है। अतः उक्त कथन सत्य है।आयू कर्म के लिए अच्छे कर्म करना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
Can its meaning be explained please?
कुछ Correction किया, अब meaning clear हुआ ?
Yes Uncle.