मुनिराज जैन कुल/सुकुल में ही आहार लेते हैं। यदि अन्य कुल में आहार के लिये गये, तो मांसाहार का त्याग कराना होगा। पर मांस का नाम आते ही अंतराय हो जाएगा।
मुनि श्री सुधासागर जी
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आहार का तात्पर्य जो प़ासुक एवं नवधा भक्ति के साथ दिया जाता है,यह सिर्फ मुनिमहाराजों को ही दिया जाता है। अतः मुनि श्री का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।
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आहार का तात्पर्य जो प़ासुक एवं नवधा भक्ति के साथ दिया जाता है,यह सिर्फ मुनिमहाराजों को ही दिया जाता है। अतः मुनि श्री का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।