उत्तम आर्जव धर्म
आर्जव धर्म = मायाचारी का न होना ।
4 के साथ तो छल कभी भी न करें …
1) स्वयं से – हर छल में हम अपने को तो छलते ही हैं ।
2) स्वजनों से – क्या अपना Mobile बिना Lock किये अपनों को दे सकते हो ?
3) कल्याण-मित्र से – ..देते हैं भगवान को धोखा, इंसा को क्या छोड़ेंगे..!
4) धर्म क्षेत्र में – धर्म को इस्तेमाल किया तो भव-अवांतर रसातल में ।
मुनि श्री प्रमाण सागर जी
4 Responses
उपरोक्त कथन सत्य है कि आर्जव धर्म का मतलब मायाचारी का होना।चार जगह के साथ कभी छल कपट नहीं करना चाहिए।स्वयं से छल करना क्योंकि हम हर पल अपने को ही छल करते रहते हैं।2 स्वजनो से छल नहीं करना चाहिए। आजकल अपने मां बाप, भाईयों,पति पत्नी आदि से छल करने लगे वह बहुत निंदनीय है।3 कल्याण मित्र ओर समाज से कभी छल नहीं करना चाहिए।4 धर्म क्षेत्र में कभी छल नहीं करना चाहिए यदि धर्म का इस्तेमाल किया तो भव अवंतर रसातल में पहुचायेगा। अतः जीवन में इन चार जगह कभी छल या कपट नहीं करना चाहिए।
“भव-अवांतर रसातल में” ka kya meaning hai?
पहले 3 से छल करने से वर्तमान भव खराब होता है, धर्म क्षेत्र में छल करने से भविष्य के अनेक भवों का का नाश ।
Okay.