उत्तम आर्जव
आर्जव = मायाचारी का उल्टा/ सरलता
■ सरलता देखनी/सीखनी है तो छोटे बच्चों से सीखें ।
• सरल होने के लिए, लोहे की छड़ की तरह तपना होगा/ घनों की चोटें सहनी होंगी ।
आचार्य श्री विद्या सागर जी
■ भगवान का उपदेश…”प्रतिपक्ष भावना बलवती”…
मन की negative picture का positive दिखाना…
क्रोध के लिये क्षमा, घ्रणा के लिये प्रेम, लालच के लिये दान आदि ।
•दुर्योधन मंत्र पढ़ कर तीर चलाता था, वह साँप बन जाता था ।
जबाव में अर्जुन भी मंत्र पढ़ कर तीर चलाता था, जो गरुड़ बन जाता था और अर्जुन बच जाता था । यदि उस समय अर्जुन गरुड़ वाले तीर की जगह पानी बरसाने वाला तीर छोड़ता या तीर छोड़ने में देरी कर देता तो क्या वह बच जाता ?
• हर बीमारी की एक निश्चित दवा लेनी होती है और समय पर अन्यथा बीमारी असाध्य हो जाती है ।
मुनि श्री अविचलसागर जी
4 Responses
यह कथन सत्य है कि आर्जव यानी मायाचारी का उल्टा सरलता होती है। सरलता देखनी और सीखनी है तो छोटे बच्चों से सीखना चाहिए।सरल होने के लिए,लोहे की छड़ की तरह तपना होगा और घनों की छोट सहना पड़ता है।
अतः क़ोध के लिए क्षमा,घ़णा के लिए प्रेम और लालच के लिए दान करना आवश्यक है। जो उदाहरण दिया है वह पूर्ण सत्य है। अतः मायाचारी से बचने के लिए सरलता का भाव होना चाहिए ताकि कल्याण हो सकता है।
2nd post of “मुनि श्री अविचलसागर जी” ka “उत्तम आर्जव” se kya relation hai? Please explain.
आर्जव वाले दिन मुनि श्री सब कषायों/negative का opposite solution भगवान ने क्या बताया है, यह समझा रहे हैं… जैसे मायाचारी के लिए सरलता ।
Okay.