उत्तम त्याग
संपूर्ण वस्तु/ वस्तुओं को छोड़ना त्याग है।
दान और त्याग में अंतर… दान पराधीन है, इसमें परिग्रह रह जाता है, विकल्प होते हैं, अच्छी और खोटी चीजों का भी होता है, दोनों पक्षों का उपकार होता है।
त्याग में स्वाधीनता, अपरिग्रह, निरपेक्ष।
सिर्फ त्याग कुछ चीजों का होता है जैसे रागद्वेष, परिवारजन। यह साक्षात मोक्ष का कारण है।
ज्ञान और अभय का सिर्फ दान होता है। यह परोक्ष से मोक्ष का कारण।
कुछ चीजों का दान भी होता है और त्याग भी जैसे आहार दान और औषधि।
त्याग में तेरा तुझको अर्पण यानी कर्म का कर्म को, कर्म से मुक्ति पाने।
वृक्ष, नदी, बादल त्याग करते हैं सिर्फ मनुष्य है जिनमें बहुत कम लोग त्याग कर पाते हैं, ज्यादातर तो पीड़ा/ समस्या ही देते हैं और कुछ नहीं।
लेने वाले का हाथ नीचे रहता है, देने वाले का ऊपर जैसे बादल और समुद्र।
दानी देता है, त्यागी दानी से भी नहीं लेता। दानी के दान से धन शुद्ध हो जाता है, त्यागी की चेतना शक्ति।
ऐसे-वैसे कैसे हो गए ? दान से और कैसे थे वे ऐसे-वैसे कैसे हो गए ? दान का पैसा खाने से या ना देने से।
आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी
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आर्यिका श्री पूर्णमती माता जी ने उत्तम त्याग को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। बिना त्याग के ज्ञान और बैराग्य शक्ति प़कट नहीं हो सकती है। बिना ज्ञान एवं बैराग्य के मोक्ष मार्ग स्फुटित नहीं हो सकता है। अतः आत्म शुद्धि के उद्देश्य में विकार भाव छोडना तथा स्व पर उपकार की दृष्टि से त्याग धर्म है। भोग में लाई गई वस्तु को छोड देना भी त्याग धर्म है। आध्यात्मिक दृष्टि से राग, द्वेष, क़ोध, मान आदि विकार भावों का आत्मा से छूट जाना ही त्याग है।