उत्तम त्याग धर्म
त्याग पूर्ण का, साधुओं के द्वारा। दान आंशिक, गृहस्थों द्वारा। क्योंकि उनसे घर के कामों में हिंसा/ पाप हो ही जाती है। उसके प्रक्षालन के लिए 10, 16, 25% दान करने को कहा है।
दान चार प्रकार के…आहार, औषधि, अभय और ज्ञान।
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प्रवृत्तियाँ…1) परिग्रह…दान का महत्व समझ कर भी न देना। बच्चा बोला देखकर, अल्लाह तेरे एक को इतना बड़ा मकान!
2) संग्रह…समविभाग दान करना। मुकुट झुकने लगें जब, त्याग दो अधिकार सारे। तुम तो ढ़ोने वाले हो, लेने वाले का पुण्य है।
3) परस्परोपग्रहो जीवानाम…जो करोगे वह लौट कर ब्याज सहित मिलेगा ही।
4) वसुधैव कुटुम्बकम्…तब देना तो अपने ही परिजनों को हुआ न !
मुनि श्री मंगलानंद सागर जी
ब्र.डॉ नीलेश भैया
2 Responses
उत्तम त्याग का उद्देश्य आत्मा की शुद्धि के लिए भाव छोडना तथा स्वयं पर उपकार की द्रष्टि से दान करना परम आवश्यक है। जोडना सग़ह करना होता है, उस पर चिपकना परिग्रह है। धन का सग़ह बांध की तरह होना चाहिए ताकि ज्यादा पानी होने पर पानी को त्यागता है। अतः जीवन में धन सग़ह के बाद दान देना परम आवश्यक है। अतः जीवन में उदारता होना चाहिए। अतः इसी प्रकार मोह, राग, द्वेष आदि का त्याग करना परम आवश्यक है। धर्म करना आवश्यक नहीं है बल्कि अधर्म का त्याग करना चाहिए। आचार्य श्री विघासागर महाराज जी ने आज का दिन गोऊ दान करना चाहिए। पदम पुराण में श्री रामचंद्र जी ने आज के दिन हजारों गायों का दान किया गया था।
मुनि श्री मंगलानंद महाराज जी ने उत्तम थर्म की परिभाषा बताई गई है वह पूर्ण सत्य है। अतः धन सग़ह करने पर पाप लग जाता है, अतः दान देना परम आवश्यक है ताकि पुण्य अर्जित हो सकता है।