उत्तम संयम धर्म
संयम चिमनी है, ज्ञान के दीपक को बाहरी हवाओं/ स्वयं की साँसों से बचाने तथा प्रकाश बढ़ाने के लिए।
राजा का महल जल गया पर वह विचलित नहीं हुआ। अगले दिन बड़ा फलदार पेड़ गिर गया, राजा बहुत रोया।
कारण ?
महल तो दो माह में नया बन सकता है पर ऐसा छाया/ फलदार पेड़ दो जन्मों में तैयार होता है।
संयम वर्तमान में छाया तथा भविष्य में फल देता है।
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संयम = सत् + यम = सत्य से बंध जाना, जीवन पर्यंत के लिए। जैसे
यमराज Forever के लिए ले जाता है।
संयम तीन प्रकार के…प्राणी तथा इंद्रिय लेकिन इनसे भी पहले प्राण(स्वयं के) संयम यानी स्वयं की रक्षा।
मुनि श्री मंगलानंद सागर जी
ब्र.डॉ नीलेश भैया
One Response
उत्तम संयम धर्म का तात्पर्य मुख्य रूप से मानसिक संयम रखना परम आवश्यक है। इन्द़ियों पर संयम रखा जा सकता है, लेकिन मानसिक संयम रखकर ही जीवन का कल्याण हो सकता है। पूर्व में कषायों का निवारण क़ोध, अहंकार, मान एवं मायाचारी से बचाने का प़यास किया गया था ताकि जीवन में मानसिक संयम रखा जा सकता है।