उत्तम सत्य धर्म
अप्रिय/ अहितकर सत्य भी असत्य है,
प्रिय/ हितकर असत्य भी सत्य है ।
1) सत्य को जानें – जो भी दिख रहा है वह सब असत्य है,
यथार्थ-दृष्टि/ परमतत्व आत्मा ही सत्य है ।
2) सत्य को भजें – सत्य की पूजा नहीं, असत्य से आसक्ति छोड़ें ।
3) सत्य जियें – सत्याचरणी बनें यानि मन,वचन और व्यवहार में सत्य उतारें ।
4) सत्य पायें – सत्य को जानकर, भजकर तथा जी कर ही; सत्य को पाया जा सकता है ।
मुनि श्री प्रमाण सागर जी
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उपरोक्त कथन सत्य है कि अप़िय और अहितकर सत्य भी असत्य है। इसके अलावा प़िय और हितकर असत्य भी सत्य है। इसके लिए चार बिंदु बताऐ गये है।1 सत्य को जाने यानी जो भी दिख रहा है,वह सब असत्य है जबकि यर्थाथ द्वष्टी परम तत्व आत्मा ही सत्य है।2 सत्य को भजे यानी सत्य की पूजा नहीं, बल्कि असत्य से आशक्ती छोड़ना है।3 सत्य जियें यानी सत्याचारिणी बनें यानी मन वचन और व्यवाहार में सत्य उतारना चाहिए।4 सत्य पायें यानी सत्य को जानकर,भजकर तथा जी कर ही सत्य पाया जा सकता है।