उदय/बंध

जिस कर्म प्रकृति का उदय होता है, प्राय: उसी का बंध भी होता है ।
जैसे अंतराय के उदय से कार्य सिद्धि नहीं हुई तो दु:ख किया, इससे अंतराय कर्म प्रकृति का बंध होगा ।
ऐसे ही पापोदय में दु:खी होने से पाप, का बंध होगा ।

Share this on...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives

November 23, 2015

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930