उपादान से सम्यग्दर्शन नहीं, निमित्त से प्रथमोपशम सम्यग्दर्शन होता है।
आत्मा की शक्तियां बैंक लॉकर में रखी सी होती हैं, उन तक पहुँचने के लिये गुरु की चाबी की जरूरत होती है।
ऐसे ही क्षायिक सम्यग्दर्शन के लिये केवली भगवान के पादमूल आवश्यक होते हैं।
मुनि श्री सुधासागर जी
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उपादान का तात्पर्य किसी कार्य में होने में जो स्वयं उस कार्य में परिणमन करता है।
निमित्त का तात्पर्य जिसका कार्य होने में सहयोग लेना पड़ता है, क्योंकि उचित निमित्त मिलने पर ही तदानुसार कार्य होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि उपादान से सम्यग्दर्शन नहीं, निमित्त से प़थमपोशम सम्यग्दर्शन होता है।इसी प्रकार क्षायिक सम्यग्दर्शन के लिए भगवान के पादमूल आवश्यक होते हैं।
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उपादान का तात्पर्य किसी कार्य में होने में जो स्वयं उस कार्य में परिणमन करता है।
निमित्त का तात्पर्य जिसका कार्य होने में सहयोग लेना पड़ता है, क्योंकि उचित निमित्त मिलने पर ही तदानुसार कार्य होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि उपादान से सम्यग्दर्शन नहीं, निमित्त से प़थमपोशम सम्यग्दर्शन होता है।इसी प्रकार क्षायिक सम्यग्दर्शन के लिए भगवान के पादमूल आवश्यक होते हैं।