कर्म किया जाता है, धर्म धारण करते हैं,
कर्म करने से धर्म बना रहता है ।
साधु बिना कर्म किये हुये भी धर्म बनाये रखते हैं/बढ़ाते भी जाते हैं ।
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धर्म- -सम्यग्दर्शन,सम्यग्ज्ञान सम्यकचारित्र ही धर्म है।
कर्म- -जीव, मन वचन काय के द्वारा कुछ न कुछ करता है वह सब उसकी क़िया या कर्म है। कर्म के द्वारा ही जीव परतंत्र होता है और संसार में भटकता है।
अतः उक्त कथन सत्य है कि कर्म किया जाता है जबकि धर्म धारण करना होता है।कर्म करने से धर्म बना रहता है। लेकिन साधु बिना कर्म किए हुए भी धर्म बनाये रखते हैं और बढ़ाते भी जाते हैं। अतः जीवन में धर्म धारण करके ही अपना उद्धार कर सकते हैं।
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धर्म- -सम्यग्दर्शन,सम्यग्ज्ञान सम्यकचारित्र ही धर्म है।
कर्म- -जीव, मन वचन काय के द्वारा कुछ न कुछ करता है वह सब उसकी क़िया या कर्म है। कर्म के द्वारा ही जीव परतंत्र होता है और संसार में भटकता है।
अतः उक्त कथन सत्य है कि कर्म किया जाता है जबकि धर्म धारण करना होता है।कर्म करने से धर्म बना रहता है। लेकिन साधु बिना कर्म किए हुए भी धर्म बनाये रखते हैं और बढ़ाते भी जाते हैं। अतः जीवन में धर्म धारण करके ही अपना उद्धार कर सकते हैं।