पूरे दिन घने बादल छाये रहे, भानु के अस्तित्व का भी भान नहीं हो रहा है, उस जैसा प्रतापी भी मुंह छिपाये बैठा है ।
कर्म जब घनघोर छा जायें, तब शांत बैठकर धर्मध्यान करना ही समझदारी होती है ।
चिंतन
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कर्म का तात्पर्य जीव मन वचन काय के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ करता है वह क़िया या कर्म है।कर्म बल का मतलब चेतना में बहुत अधिक कर्मों का चिपकना। अतः उक्त कथन सत्य है कि जब कर्म बल घनघोर छा जाते हैं,तब धर्म ध्यान या कर्मों को झाड़ाने का कार्य करना ही समझदारी होना चाहिए।
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कर्म का तात्पर्य जीव मन वचन काय के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ करता है वह क़िया या कर्म है।कर्म बल का मतलब चेतना में बहुत अधिक कर्मों का चिपकना। अतः उक्त कथन सत्य है कि जब कर्म बल घनघोर छा जाते हैं,तब धर्म ध्यान या कर्मों को झाड़ाने का कार्य करना ही समझदारी होना चाहिए।