परिग्रह है चीजों का संग्रह/उनसे ममत्व,
राग कषाय है, राग से ही करते हैं संग्रह/ममत्व,
इसीलिये कषाय को परिग्रह कहा तो गलत नहीं ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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कषाय—आत्मा में होने वाली क़ोधादि रुप कलुषता को कहते हैं।क़ोध,मान,माया और लोभ रुप चार कषाये होती है। परिग़ह—यह मेरा है, मैं इसका स्वामी हूं,इस प्रकार का ममत्व भाव ही परिग़ह है।
अतः यह कथन सत्य है कि परिग़ह में चीजों का संग्रह और उससे ममत्व राग कषाय है, इसलिए कषाय को परिग़ह कहा गया है वह तो गलत नहीं है।
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कषाय—आत्मा में होने वाली क़ोधादि रुप कलुषता को कहते हैं।क़ोध,मान,माया और लोभ रुप चार कषाये होती है। परिग़ह—यह मेरा है, मैं इसका स्वामी हूं,इस प्रकार का ममत्व भाव ही परिग़ह है।
अतः यह कथन सत्य है कि परिग़ह में चीजों का संग्रह और उससे ममत्व राग कषाय है, इसलिए कषाय को परिग़ह कहा गया है वह तो गलत नहीं है।