कृतत्व / भोक्तृत्व / स्वामित्व
आचार्य श्री विद्यासागर जी से एक व्यक्ति ने पूछा –
सम्यग्दृष्टि के कर्तृत्व, भोक्तृत्व और स्वामित्व भाव तो हो नहीं सकते ?
आचार्य श्री – तो क्षायिक सम्यग्दृष्टि राम और चक्रवर्ती भरत ने युद्ध क्यों लड़े ?
हाँ ! वीतराग सम्यग्दृष्टि के ये भाव नहीं होते हैं ।
मुनि श्री समयसागर जी (धर्मेन्द्र)
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सम्यग्दर्शन का तात्पर्य सच्चे देव शास्त्र गुरु पर श्रद्वान होता है, अथवा स्वयं का भेद विज्ञान होता है। इसके अलावा निश्चय और व्यवहार नय होता है। मिथ्यात कर्म के उदय से उपशम, क्षय,क्षयोपशम से तीन भेद हैं।
अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन सत्य है,वीतराग सम्यग्द्वष्टि के भाव ही कृतत्व आदि के होते हैं ।