केवलज्ञान
- केवलज्ञान सम्पूर्ण => ज्ञान के सारे शक्ति-अंश व्यक्त हो गये।
- केवलज्ञान समग्र => मोहनीय और वीर्यान्तराय कर्मों के क्षय से समग्र ज्ञान प्रकट हो जाता है।
- केवलज्ञान असहाय => इंद्रियों की सहायता के बिना प्राप्ति।
- केवलज्ञान प्रतिरोध रहित => घातिया कर्मों के क्षय से।
- केवलज्ञान अनंत ज्ञान रुप => लोकालोक में सब पदार्थों को जान लिया।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकांड- गाथा 460)
6 Responses
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने केवलज्ञान को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।
‘केवलज्ञान सम्पूर्ण’ aur ‘केवलज्ञान केवलज्ञान सम्पूर्ण’ me kya difference hai ? Ise explain karenge, please ?
सुधार दिया।
Okay.
5th point ka koi naam nahi? Ise clarify karenge, please ?
नाम दे दिया।