गतिभ्रमण

देव, नारकी इसलिये नहीं बनते क्योंकि उनके यहाँ आरम्भ, परिग्रह (नियोग है) नहीं होती ।
एक इंद्रिय इसलिये बनते हैं क्योंकि उनके स्पर्श-इंद्रिय लम्पटता बहुत होती है ।
ऐसे ही रसना की लम्पटता से दो इंद्रिय आदि बनते हैं ।

मुनि श्री सुधासागर जी

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One Response

  1. गति भ़मण- – जिस कर्म के उदय से जीव देव,नारकी,तिर्यंच या मनुष्य कहलाता है।
    इन्द्रिय- – जो सूक्ष्म आत्मा के अस्तित्व का ज्ञान कराने में सहायक हैं वह इन्द्रिय कहते हैं।
    अतः उक्त कथन सत्य है कि देव,नारकी इसलिए नहीं बनते क्योंकि उनके यहां आरम्भ,परिग़ह नहीं होती है।एक इन्द्रिय इसलिए बनते हैं क्योंकि उनके स्पर्श इंन्दिय में लम्पटता बहुत होती है। अतः ऐसे ही रसना की लम्पटता से दो इन्द्रिय आदि बनते हैं। अतः यह कथन सत्य है कि जीव चारों गतियों में परिभ्रमण करता है जो उसके कर्मों पर आधारित होते हैं।

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