जीवनपर्यंत सिर्फ पहले और चौथे में ही रहा जा सकता है, पांचवें में क्यों नहीं ?
क्योंकि पांचवाँ जन्म से नहीं हो सकता, कम से कम 8 वर्ष और अंतर मुहूर्त बाद ही होगा (मनुष्य/त्रियंचों का) ।
मुनि श्री सुधा सागर जी
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गुणस्थान- -मोह और योग के माध्यम से जीव के परिणामों में होने वाले उतार चढ़ाव को गुणस्थान कहते हैं। जीवों के परिणाम यद्यपि अनन्त है,परन्तु उन सभी चौदह श्रेणियों में विभाजित किया गया है। अतः उक्त कथन सत्य है कि जीवन पर्यन्त पहिले और चौथे में रहा जा सकता है। लेकिन पांचवां जन्म से नहीं हो सकता, कमसे कम आठ वर्ष और अंतर मुहुर्त बाद ही होगा मनुष्य और तिर्यचों का ही होगा।
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गुणस्थान- -मोह और योग के माध्यम से जीव के परिणामों में होने वाले उतार चढ़ाव को गुणस्थान कहते हैं। जीवों के परिणाम यद्यपि अनन्त है,परन्तु उन सभी चौदह श्रेणियों में विभाजित किया गया है। अतः उक्त कथन सत्य है कि जीवन पर्यन्त पहिले और चौथे में रहा जा सकता है। लेकिन पांचवां जन्म से नहीं हो सकता, कमसे कम आठ वर्ष और अंतर मुहुर्त बाद ही होगा मनुष्य और तिर्यचों का ही होगा।