यानि गुरुवचन, यह उपकरण है।
शास्त्र अपरम्पार है, पर गुरुवचन का भी तो पार नहीं क्योंकि गुरु शास्त्रों का निचोड़ हमारे कानों में देते हैं। जो उनको याद रखते हैं वे पार हो जाते हैं, हमें प्राणापान कराते हैं जैसे मूर्ति में प्राणप्रतिष्ठा करके भगवान बनाते हैं।