चारित्र

इसकी शुरुआत –
5 गुणस्थान से (चरणानुयोग तथा द्रव्यानुयोग की अपेक्षा ) – जब चारित्र के दो भेद किये (देश/सकल) ।

तीन भेद (उपशम, क्षायिक, क्षयोपशम) की अपेक्षा क्षयोपशमिक चारित्र ,6 गुणस्थान से ।

मोक्षमार्ग की शुरुआत –
6 गुणस्थान से

क्षायिक/औपशमिक चारित्र – 8 गुणस्थान से (कथन से),
(वैसे 8 से 10 गुणस्थानों में कषायों के सद्भाव के कारण क्षयोपशमिक चारित्र ही होता है )

पं. रतनलाल बैनाड़ा जी

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