चारित्र
1. चरण = चलना।
2. चारित्र = आत्मा में चर्या करने रूप प्रवृत्ति।
3. सामायिक-चारित्र – प्रथम चारित्र, समभाव रखना। इसके बिना आगे के चारित्र नहीं हो सकते।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
1. चरण = चलना।
2. चारित्र = आत्मा में चर्या करने रूप प्रवृत्ति।
3. सामायिक-चारित्र – प्रथम चारित्र, समभाव रखना। इसके बिना आगे के चारित्र नहीं हो सकते।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी