नियति ने मनुष्य/तिर्यंच को गर्भ/जन्म में बहुत पीड़ा क्यों दी ?
देवों और भोगभूमिज को तो नहीं होती ?
क्योंकि उनको तो जीवन भर दु:ख सहना है, देवों को नहीं सहना।
नारकियों को तो भयानक दु:ख सहने हैं सो 9 माह आदि का भी इंतज़ार न करके अंतरमुहूर्त में दु:ख सहने तैयार हो जाते हैं।
चिंतन
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जन्म का मतलब जीव को नवीन शरीर की उत्पत्ति होती है।जब नया जीव आता है तो पीड़ा तो स्वाभाविक है। इसमें अलग अलग जीवों में होती है,या कम होती है। इसमें असंज्ञी के मन नहीं होता हैं, इसलिए याद रखने की जरुरत नहीं होती है। जीवन में गर्भ संस्कार देना चाहिए ताकि पीड़ा भी न हो एवं सन्तान की उत्पत्ति अच्छी होती है। भगवान् की उत्पत्ति में मां को पीड़ा कम होती है,इसका कारण गर्भ संस्कार दिए जाते थे।
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जन्म का मतलब जीव को नवीन शरीर की उत्पत्ति होती है।जब नया जीव आता है तो पीड़ा तो स्वाभाविक है। इसमें अलग अलग जीवों में होती है,या कम होती है। इसमें असंज्ञी के मन नहीं होता हैं, इसलिए याद रखने की जरुरत नहीं होती है। जीवन में गर्भ संस्कार देना चाहिए ताकि पीड़ा भी न हो एवं सन्तान की उत्पत्ति अच्छी होती है। भगवान् की उत्पत्ति में मां को पीड़ा कम होती है,इसका कारण गर्भ संस्कार दिए जाते थे।