पूरा उबला हुआ जल 24 घंटे के लिये प्रासुक हो जाता है, पर उसे दुबारा नहीं उबाला जाना चाहिये ।
कम उबले जल को 6/12 घंटे की मर्यादा के बाद छान कर दुबारा उबाल कर, उसकी मर्यादा 24 घंटे के लिये बढ़ायी जा सकती है, पर छानने के बाद बिलछनी कुँए में ही करनी चाहिये ।
पं रतनलाल बैनाड़ा जी
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प़ासुक-जल, वनस्पति आदि को विशेष प़ाक़िया के द्वारा सूक्ष्म जीवों के संचार से रहित करना प़ासुक कहलाता है। जिसमें से एकेन्दिय आदि जीव निकल जाते हैं वह प़ासुक द़व्य माना जाता है।स्वच्छ वस्त्र से छाना गया जल 48 मिनट तक अव्रतियों के पीने योग्य रहता है तथा उबला हुआ जल चौबीस घंटे तक प़ासुक रहता है।
अतः यह कथन सत्य है कि उबला हुआ जल चौबीस घंटे के लिए प़ासुक हो जाता है लेकिन उसको दुबारा उबालाना नहीं चाहिए।यह भी सही है कि कम उबले जल को 6से12घन्टे बाद उबालकर उसकी मर्यादा चौबीस घंटे तक बढ़ाई जा सकती हैं।,पर छानने के बाद बिलछनी कुएं में करना चाहिए।
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प़ासुक-जल, वनस्पति आदि को विशेष प़ाक़िया के द्वारा सूक्ष्म जीवों के संचार से रहित करना प़ासुक कहलाता है। जिसमें से एकेन्दिय आदि जीव निकल जाते हैं वह प़ासुक द़व्य माना जाता है।स्वच्छ वस्त्र से छाना गया जल 48 मिनट तक अव्रतियों के पीने योग्य रहता है तथा उबला हुआ जल चौबीस घंटे तक प़ासुक रहता है।
अतः यह कथन सत्य है कि उबला हुआ जल चौबीस घंटे के लिए प़ासुक हो जाता है लेकिन उसको दुबारा उबालाना नहीं चाहिए।यह भी सही है कि कम उबले जल को 6से12घन्टे बाद उबालकर उसकी मर्यादा चौबीस घंटे तक बढ़ाई जा सकती हैं।,पर छानने के बाद बिलछनी कुएं में करना चाहिए।