ज़िंदगी
क्या भरोसा है ज़िंदगी का, इंसान बुलबुला है पानी का ।
जी रहे हैं हम कपड़े बदल बदल कर, एक दिन एक ही कपड़े में ले जायेंगे लोग हमें, कंधे बदल बदल कर ।
(श्रीमति रिंकी)
क्या भरोसा है ज़िंदगी का, इंसान बुलबुला है पानी का ।
जी रहे हैं हम कपड़े बदल बदल कर, एक दिन एक ही कपड़े में ले जायेंगे लोग हमें, कंधे बदल बदल कर ।
(श्रीमति रिंकी)
2 Responses
Very well said.
Inspite of knowing this hard fact, we want to cling to all materialistic things and in the process, we neglect the one thing that stays with us all throughout i.e. our deeds.
Ye kadwa sach hai.