पाचन-शक्ति के अभाव में, अकेले घी पीने से कोई पहलवान नहीं बनता,
इसी तरह श्रद्धा/जिज्ञासा/प्रारम्भिक-ज्ञान बिना,अध्यात्म-ग्रंथ पढ़ लेने से कोई ज्ञानी नहीं बनता ।
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जिज्ञासा तो हर प़ाणी की होती है लेकिन अपनी क्षमता अनुसार होना चाहिए ताकि उसे पूर्ण रूप ले सकता है।
जहां तक आध्यमिक जिज्ञासा होती है वह सिर्फ पढने मात्र से काम नहीं चलता है ,उसके के लिए जिज्ञासा के साथ श्रद्वा होना आवश्यक है और चिन्तन होना चाहिए ताकि आप ज्ञानी बन सकते हैं।
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जिज्ञासा तो हर प़ाणी की होती है लेकिन अपनी क्षमता अनुसार होना चाहिए ताकि उसे पूर्ण रूप ले सकता है।
जहां तक आध्यमिक जिज्ञासा होती है वह सिर्फ पढने मात्र से काम नहीं चलता है ,उसके के लिए जिज्ञासा के साथ श्रद्वा होना आवश्यक है और चिन्तन होना चाहिए ताकि आप ज्ञानी बन सकते हैं।