पूजा वाली लाल पुस्तक को प्राय: जिनवाणी कहा (और उस पर लिखा भी रहता है) जाता है,
कारण ?
उसमें लिखी पूजादि ही साधारणजन नित्य करके अपना कल्याण कर रहे हैं ।
उसमें जो लिखा है वह देव, गुरू, शास्त्रानुसार ही होता है ।
चिंतन
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जिनवाणी—-सब जीवों के हित का उपदेश देने वाली, श्री अर्हन्त भगवान् की वाणी को कहते हैं।तत्व का स्वरुप बताने वाली, यह जिनवाणी व्दादशांग रुप होती है। जिनवाणी में लिखी पूजादि ही साधारण जन नित्य करके अपना कल्याण कर रहे हैं।अतः उसमे जो लिखा है वह देव, गुरु और शास्त्रानुसार ही होता है।
धर्म में जो जिनवाणी पर श्रद्वान करता है वही अपना कल्याण करने में समर्थ हो सकता है।
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जिनवाणी—-सब जीवों के हित का उपदेश देने वाली, श्री अर्हन्त भगवान् की वाणी को कहते हैं।तत्व का स्वरुप बताने वाली, यह जिनवाणी व्दादशांग रुप होती है। जिनवाणी में लिखी पूजादि ही साधारण जन नित्य करके अपना कल्याण कर रहे हैं।अतः उसमे जो लिखा है वह देव, गुरु और शास्त्रानुसार ही होता है।
धर्म में जो जिनवाणी पर श्रद्वान करता है वही अपना कल्याण करने में समर्थ हो सकता है।