जीव, संसारी को ही लिया जाता है – जो प्राणों से जीता है।
सिद्ध तो आत्मा के रूप में है/१० प्राणों से रहित है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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जीव का तत्त्वार्थ जो जानता एवं देखता है या जिसमें चेतना हो,दो प़कार के जीव संसारी एवं मुक्त जीव । अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि जीव संसारी को लिया जाता है यानी जो प्राणों से जीता है सिद्ध तो आत्मा के रुप में है लेकिन प्राणों से रहित होते हैं। अतः मुक्ति होना है तो धर्म को आत्मसात करना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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जीव का तत्त्वार्थ जो जानता एवं देखता है या जिसमें चेतना हो,दो प़कार के जीव संसारी एवं मुक्त जीव । अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि जीव संसारी को लिया जाता है यानी जो प्राणों से जीता है सिद्ध तो आत्मा के रुप में है लेकिन प्राणों से रहित होते हैं। अतः मुक्ति होना है तो धर्म को आत्मसात करना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।