तीर्थंकर प्रकृति बंध

यह उन जीवों के नहीं होता जिनके मनुष्य या त्रियंच आयुबंध हो गया हो । क्योंकि मनुष्य व त्रियंच सम्यग्दर्शन के साथ कर्मभूमि में मनुष्य नहीं बनते और तीर्थंकर प्रकृति बांधने के तीसरे भव से मोक्ष जाना ही होता है ।

श्री जैनेन्द्र सिद्धांत कोश – 2/376

षटखंडागम, कषायपाहुण तथा आ.श्री विध्या सा.जी के अनुसार तीर्थंकर प्र.बंध के लिये केवली के पादमूल आवश्यक नहीं ।

पाठशाला-16 कारण 1/17

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