तीर्थंकर-प्रकृति
यह पाप को निर्जरित करती है* ।
यह भी औदायिक-कर्म है, पर मांगलिक है ।
जबकि बाकि सब औदायिक-कर्म अमांगलिक होते हैं ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
(* जिन उत्कृष्ट पुण्यों से तीर्थंकर प्रकृति बंधती है, उनसे पाप निर्जरित भी होंगे ;
2) तीर्थंकर-प्रकृति के उदय होने पर अन्य जीवों के पाप भी निर्जरित होते हैं ।
पं.रतनलाल बैनाडा जी )
One Response
प़कृति बंध- -प़कृति का अर्थ स्वभाव होता है। आत्मा के द्वारा ग़हण किए गए पुदगल स्कंध में ज्ञान आदि को आवरित करने रुप कर्म प़कृति का होना प़कृति बंध–प़कृति होता है,आठ मूल कर्म प़कृतिया हैं। अतः उक्त कथन सत्य है कि यह पाप को निर्जरित करती है,यह भी औदयिक कर्म है लेकिन यह मांगलिक होता है। बाकी सब औदायिक कर्म अमांगलिक होते हैं।