वैदिक तीर्थ-स्थल प्राय: नदियों के किनारे होते हैं, क्योंकि उनके यहाँ आत्मा परमात्मा में विलीन होती है, जैसे नदी समुद्र में ।
जैन संस्कृति प्राय: पहाड़ों पर क्योंकि उनकी श्रमण संस्कृति में हर आत्मा अपने-अपने श्रम से ऊपर उठकर परमात्मा बनती है ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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तीर्थ का मतलब जिसके आश्रय से पार उतरते हैं। तीर्थ का अर्थ धर्म भी है। धर्म की प्राप्ति में गिरनार जी,सम्मेदशिखर जी, पावापुरी आदि निर्वाण क्षेत्र भी तीर्थ कहलाते हैं। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि वैदिक तीर्थ स्थल प़ायः नदियों के किनारे होते हैं क्योंकि उनके यहां आत्मा परमात्मा में विलीन होती है जैसे नदी समुद्र में विलीन होती है। जबकि जैन संस्कृति में हर आत्मा अपने अपने श्रम से ऊपर उठकर परमात्मा बनती है।इस विषय में मुनि श्री प़माण सागर महाराज जी ने अपने शंका समाधान में भी बतलाया गया था।
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तीर्थ का मतलब जिसके आश्रय से पार उतरते हैं। तीर्थ का अर्थ धर्म भी है। धर्म की प्राप्ति में गिरनार जी,सम्मेदशिखर जी, पावापुरी आदि निर्वाण क्षेत्र भी तीर्थ कहलाते हैं। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि वैदिक तीर्थ स्थल प़ायः नदियों के किनारे होते हैं क्योंकि उनके यहां आत्मा परमात्मा में विलीन होती है जैसे नदी समुद्र में विलीन होती है। जबकि जैन संस्कृति में हर आत्मा अपने अपने श्रम से ऊपर उठकर परमात्मा बनती है।इस विषय में मुनि श्री प़माण सागर महाराज जी ने अपने शंका समाधान में भी बतलाया गया था।