त्याग
मूल्य त्याग का नहीं, त्याग को निभाने के लिये आप कितना मूल्य चुकाने को तैयार हैं, वह तय करता है कि त्याग बड़ा है या छोटा ।
वह तय करता है कि उसका फल बड़ा मिलेगा या छोटा ।
मुनि श्री सुधासागर जी
मूल्य त्याग का नहीं, त्याग को निभाने के लिये आप कितना मूल्य चुकाने को तैयार हैं, वह तय करता है कि त्याग बड़ा है या छोटा ।
वह तय करता है कि उसका फल बड़ा मिलेगा या छोटा ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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जैन धर्म में त्याग का महत्वपूर्ण स्थान है।यह कथन सही है कि मूल्य त्याग का नहीं है बल्कि उसको निभाने का है।त्याग तीन प़कार का होता है। 1 सचेतन और अचेतन समस्त परिग़ह की निवृति को कहते हैं। 2 परस्पर प़ीति के लिए वस्तू को देना त्याग है। 3 संयमी जनो के योग्य ज्ञान आदि का दान करना भी कहलाता है।
अतः यह तीन प़कार के फल अलग अलग होते हैं जिनको निभाना होता है।तीसरा त्याग सबसे अधिक महत्वपूर्ण है जो जीवन के कल्याण में सहायक है।