दया तो आत्मा का स्वभाव है ।
करुणा चारित्र मोहनीय का विषय, इसमें कर्तत्व-भाव आ जाता है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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दया- – दीन दुःखी जीवों के प्रति अनुग्रह या उपकार का भाव होना दया या करुणा कहलाती है।
करुणा दान- – दीन दुखी जीवों को दया पूर्वक यथायोग्य आहार औषधि देना कहलाता है।
मोह- – सामान्यतया सम्यग्दर्शन पर आवरण की बात करने वाले, दर्शन मोहनीय कर्म को मोह कहा गया है।
अतः उक्त कथन सत्य है कि दया तो आत्मा का स्वभाव है लेकिन करुणा, चारित्र मोहनीय का विषय है, इसमें कर्त्तव्य भाव आ जाता है।
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दया- – दीन दुःखी जीवों के प्रति अनुग्रह या उपकार का भाव होना दया या करुणा कहलाती है।
करुणा दान- – दीन दुखी जीवों को दया पूर्वक यथायोग्य आहार औषधि देना कहलाता है।
मोह- – सामान्यतया सम्यग्दर्शन पर आवरण की बात करने वाले, दर्शन मोहनीय कर्म को मोह कहा गया है।
अतः उक्त कथन सत्य है कि दया तो आत्मा का स्वभाव है लेकिन करुणा, चारित्र मोहनीय का विषय है, इसमें कर्त्तव्य भाव आ जाता है।