दान देना हो तो सुपात्र को दें,
दान लेने आये तो कुपात्र को भी दें (करुणा-दान) ।
सुभाष-चिंतन
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दान का तात्पर्य परोपकार की भावना से अपनी वस्तु का अर्पण करना होता है,यह चार प्रकार के होते हैं,आहार दान, औषधि दान, उपकरण या ज्ञान दान और अभय दान। अभय दान में ही करुणा दान आता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि दान देना हो तो सुपात्र को देना चाहिए,यदि दान लेने आए तो कुपात्र को भी देना चाहिए, इसी को करुणा दान कहते हैं।
मुख्य दान तो आहार दान, औषधि दान और ज्ञान दान होता है,जो जीवन का कल्याण करने में समर्थ होता है।
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दान का तात्पर्य परोपकार की भावना से अपनी वस्तु का अर्पण करना होता है,यह चार प्रकार के होते हैं,आहार दान, औषधि दान, उपकरण या ज्ञान दान और अभय दान। अभय दान में ही करुणा दान आता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि दान देना हो तो सुपात्र को देना चाहिए,यदि दान लेने आए तो कुपात्र को भी देना चाहिए, इसी को करुणा दान कहते हैं।
मुख्य दान तो आहार दान, औषधि दान और ज्ञान दान होता है,जो जीवन का कल्याण करने में समर्थ होता है।