भगवान की वाणी न खिरने का मुख्य कारण –
वाणी समझने वाले की कमी से ज्यादा, वाणी सुनकर उस पर चलने वाले की कमी है ।
गणधर चाहे मुनि/गणधर अवस्था में हों या श्रावक, उनकी उपस्थिति में खिरने लगती है ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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दिव्य ध्वनि का तात्पर्य जब भगवान का केवलज्ञान होने के बाद औंकार वाणी खिरती है। उपरोक्त वाणी शुबह, दोपहर,शाम और अर्धरात्रि को खिरती है।यह सभी भाषाओं में रहती है,इसको मनुष्य से त्रियंच तक सभी सुनते हैं।जब वाणी खिरने के बाद समय रहता है तब गणधर,इन्द व चक्रवर्ती प़श्न पूछते हैं।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि वाणी खिरने के बाद उस पर चलने का अभाव रहता है। अतः गणधर चाहे मुनि अवस्था या श्रावक हों तभी खिरती है जबकि उनकी वाणी पर चलने में समर्थ रहते हैं।
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दिव्य ध्वनि का तात्पर्य जब भगवान का केवलज्ञान होने के बाद औंकार वाणी खिरती है। उपरोक्त वाणी शुबह, दोपहर,शाम और अर्धरात्रि को खिरती है।यह सभी भाषाओं में रहती है,इसको मनुष्य से त्रियंच तक सभी सुनते हैं।जब वाणी खिरने के बाद समय रहता है तब गणधर,इन्द व चक्रवर्ती प़श्न पूछते हैं।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि वाणी खिरने के बाद उस पर चलने का अभाव रहता है। अतः गणधर चाहे मुनि अवस्था या श्रावक हों तभी खिरती है जबकि उनकी वाणी पर चलने में समर्थ रहते हैं।