अपेक्षा से दु:ख

एक मटका और गुलदस्ता साथ में खरीदा हो और घर में लाने के 3 दिन बाद 50 रुपये का मटका अगर फूट जाए तो हमें इस दुःख होता है, क्योंकि मटका इतनी जल्दी फूट जायेगा ऐसी हमें कल्पना भी नहीं थी,
पर गुलदस्ते के फूल जो 200 रुपये के थे, वो शाम तक मुरझा जाँए तो भी हम दुःखी नहीं होते, क्योंकि ऐसा होने वाला ही है, यह हमें पता ही था ।

जिससे जितनी अपेक्षा ज़्यादा,
उसकी तरफ से उतना दुःख ज़्यादा ।

(अरविंद)

(प्रियजनों के विछोह पर भी दुःख इसीलिये होता है क्योंकि हम उनसे विछोह की अपेक्षा नहीं रखते)।

Share this on...

One Response

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives

October 5, 2016

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930